जी हाँ लॉक डाउन के बाद मैदानी क्षेत्रों में रोजगार की तलाश में गये युवा घर वापसी के बाद अब खेतो में पसीना बहाकर ऑर्गेनिक खेती कर रहे है जो सोने से कम नही है युवाओं का कहना है कि वे यूरिया का प्रयोग बिल्कुल नही करेंगे क्योंकि उससे खेती तो खराब हो ही रही है साथ ही उगने वाला अनाज भी धीमा जहर बन रहा है इसलिए यूरिया को बाय बाय और ऑर्गनिक खेती पर जोर दिया जा रहा है इसकी डिमांड भी काफी बढ़ रही है जब लोग आर्गेनिक खेती करेंगे तो पशुपालन भी बढ़ेगा और पशु सड़को पर नही बल्कि लोगो के घर मे रहे रहेंगे
राज्य बनने के बाद से ही सरकार का प्रयास था कि पलायन पर रोक लगे और गांव आबाद हो अब त्रिवेंद्र सरकार को गांव में सुविधाओं की मुहिम चलाकर ये जताना होगा कि वे भी युवाओं के साथ है तभी पहाड़ो में खेत लहलहाते नजर आएंगे और दूर दराज के गांव में चहल पहल की निरंतरता बनी रहेगी